हैं आँखें खुश्क
- सविता असीम
हैं आँखें खुश्क रोये जा रही हूँ
मैं अपना दर्द ढोये जा रही हूँ
तुझे पा लेने की इस धुन में मैं भी
मुसलसल ख़ुद को खोये जा रही हूँ
उगेगी कब फ़स्ल इन्सानियत की
वफ़ा के बीज बोये जा रही हूँ
बहाने जागने के सैकड़ों हैं
मगर मैं हूँ कि सोये जा रही हूँ
मोहब्बत की कहानी लिख रही हूँ
कलम ख़ूँ में डुबोये जा रही हूँ
ग़ज़ल के रेशमी धागों पे ‘सविता’
मैं बस आँसू पिरोये जा रही हूँ
मैं अपना दर्द ढोये जा रही हूँ
तुझे पा लेने की इस धुन में मैं भी
मुसलसल ख़ुद को खोये जा रही हूँ
उगेगी कब फ़स्ल इन्सानियत की
वफ़ा के बीज बोये जा रही हूँ
बहाने जागने के सैकड़ों हैं
मगर मैं हूँ कि सोये जा रही हूँ
मोहब्बत की कहानी लिख रही हूँ
कलम ख़ूँ में डुबोये जा रही हूँ
ग़ज़ल के रेशमी धागों पे ‘सविता’
मैं बस आँसू पिरोये जा रही हूँ