लोग जब अपनापन जताते हैं
- सविता असीम
- सविता असीम
लोग जब अपनापन जताते हैं
इक नया ज़ख़्म देके जाते हैं
जब बदलना है रास्ते उनको
किसलिए झूठी कसमें खाते हैं
जिनके चेहरे पे सौ खराशें हैं
वो हमें आईना दिखाते हैं
खुद ही भटके हैं रास्ता वो लोग
सबको जो रास्ता बताते हैं
जो मुखौटे लगाके मिलते हैं
वो ‘सविता’ को जान जाते हैं
इक नया ज़ख़्म देके जाते हैं
जब बदलना है रास्ते उनको
किसलिए झूठी कसमें खाते हैं
जिनके चेहरे पे सौ खराशें हैं
वो हमें आईना दिखाते हैं
खुद ही भटके हैं रास्ता वो लोग
सबको जो रास्ता बताते हैं
जो मुखौटे लगाके मिलते हैं
वो ‘सविता’ को जान जाते हैं
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